तू अब पहले के जैसी सताती नहीं है,
तेरी बाते अब याद आती नहीं है|
वो नन्ही सी आखे, वो नाज़ुक सी बाते,
वो बेमानी शर्तो में उलझी सी राते,
वो बारिश की बुदो की प्यारी सी उलझन,
वो सड़को के गड्दो की अनचाही अड़चन,
अब वो बारिश की बुदे बिंगाती नहीं है,
तेरी बाते अब याद आती नहीं है|
वो परेशां होठो से कुछ बदबदाना,
वो खाम्ख्वा बिना बात के खिलखिलाना,
वो हर बात पर बेमतलब से परदे,
वो हर बात को न जाने क्यों मुझसे छुपाना,
तू अब भी मुझे कुछ बताती नहीं है,
पर तेरी बाते अब याद आती नहीं है|
वो अनचाही बातो के तेरे पुलिंदे,
वो फिर उनको सुलझा कर मुझको समझाना,
उलझा न जाने कब वो बातो का बाना,
तुम सच कहती थी की बातो को बोझ न बनाना,
तेरी उलझी बाते मुझसे अब भी सुलझ पाती नहीं है,
पर अब वो तेरी बाते याद आती नहीं है|
Thursday, February 7, 2008
तेरी बाते
Posted by viju at 6:19 PM 10 comments
Labels: poem
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